महान संत रविदास महाराज जी ने समाज की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई थी.तथा उन्होंने एक चोर, धोखे-बाज व बेईमान ब्राह्मण की जान भी बचाई थी।
प्राचीन रविदास मंदिर का पूरा इतिहास जानने से पहले उन सस्थाओं के बारे में जान लीजिये जिनका मंदिर तोड़ने में सहगिता है।
सर्वोच्च न्यायालय का गठन:- 28 जनवरी 1950 को इसके उद्घाटन के बाद, उच्चतम न्यायालय ने संसद भवन के चैंबर ऑफ़ प्रिंसेस में अपनी बैठकों की शुरुआत की। उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एस. सी. बी. ए.) सर्वोच्च न्यायालय की बार है। एस. सी . बी. ए. के वर्तमान अध्यक्ष राकेश कुमार खन्ना हैं, जबकि प्रीती सिंह मौजूदा मानद सचिव हैं।
दिल्ली विकास प्राधिकरण स्थापना की स्थापना :- 1957
यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का इतिहास :- भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की एक इकाई है, जिसकी 55.43% अंश पूंजी भारत सरकार के पास है। बैंक 20 अगस्त 2002 को आरंभिक पब्लिक ऑफर (आई पी ओ) और फरवरी 2006 में फ्लो-ऑन पब्लिक ऑफर के साथ पूँजी बाजार में आया। वर्तमान में, बैंक की 44.57% अंश पूंजी संस्थाओं, व्यक्तियों एवं अन्यों के पास हैं। बीसवीं सदी के आरंभ में यूनियन बैंक ऑफ इंडिया का शुभारंभ महात्मा गांधी के हाथों से संपन्न हुआ।
आइये अब जानते हैं प्राचीन रविदास मंदिर का पूरा इतिहास
1 मार्च 1509
दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान सिंकदर लोधी ने जमीन का एक टुकड़ा रविदास को दान किया।
1509
रविदास के समर्थकों द्वारा जमीन पर एक तालाब और एक आश्रम बनाया गया।
1949-1954
रविदास के समर्थकों ने गुरु रविदास जयंती समारोह समिति के अंतर्गत वहां एक मंदिर का निर्माण किया।
1959
तत्कालीन रेलवे मंत्री बाबू जगजीवन राम ने इस मंदिर का उद्घाटन किया।
9 अगस्त 2019
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुरु रविदास जयंती समारोह समिति ने शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद जंगली इलाके को खाली नहीं करके गंभीर उल्लंघन किया है। गुरु रविदास जयंती समारोह समिति बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के बीच सुप्रीम कोर्ट में केस में सर्वोच्च अदालत ने डीडीए से 10 अगस्त तक वहां से निर्माण को हटाने का आदेश दिया था।
10 अगस्त 2019
डीडीए ने निर्माण को हटाया।
14 अगस्त 2019
बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने ऑफिसियल ट्विटर अकॉउंट ने भाजपा व दिल्ली सरकार पर निशाना साधा जिसके जवाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने ट्वीट कर सफाई दी कि इसमें हमारा कोई हाथ नहीं है ये मामला केंद्र की भाजपा सरकार के अधीन आता है।
दिल्ली के तुगलकाबाद क्षेत्र में बना सन्त रविदास मन्दिर केन्द्र व दिल्ली सरकार की मिली-भगत से गिरवाये जाने का बी.एस.पी. ने सख्त विरोध किया। इससे इनकी आज भी हमारे सन्तों के प्रति हीन व जातिवादी मानसिकता साफ झलकती है।
मायावती जी, मंदिर के गिराए जाने से हम सब लोग बेहद व्यथित हैं। इसका सख़्त विरोध करते हैं
मुझे दुःख है कि आप केंद्र के साथ इसके लिए हमें दोषी मानती हैं। दिल्ली में “ज़मीन” केंद्र सरकार के अधीन आती है। हमारी सरकार का इस मंदिर के गिराए जाने में कोई हाथ नहीं।
इधर, सुप्रीम कोर्ट ने गुरु रविदास मंदिर को हटाने पर भक्तों के गुस्से को राजनीति बताया और धमकाया। कोर्ट ने कहा कि धरना और प्रदर्शन को बढ़ावा देने वाले के खिलाफ अवमानना का केस चल सकता है। जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस अजय रस्तोगी की पीठ ने गुरु रविदास जयंती समारोह समिति की तरफ से पेश वकील से कहा, ‘ऐसे मत सोचिए कि हमारे पास ताकत नहीं है। हमें मुद्दे की गंभीरता का पता है। एक शब्द मत बोलिए और मामले को मत बढ़ाइए। आप पर अवमानना का केस चल सकता है। हम आपके पूरे मैनेजमेंट को जिम्मेदार ठहरा सकते हैं। हम देखेंगे कि क्या हो सकता है।’ कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से इस मामले में मदद करने को कहा है।
कोर्ट मुद्दे का राजनीतिकरण करके अपने ग़ुनाहों पर परदा डाल रहा है।
देखिये क्या कहा कोर्ट ने :- बेंच ने कहा कि एक बार जब आदेश दिया जा चुका है तो इस तरह की गतिविधियां नहीं की जा सकती हैं और मुद्दे का राजनीतिकरण नहीं किया जा सकता है। हम अवमानना शुरू करेंगे। ऐसा नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा कि वह शीर्ष अदालत के आदेश की आलोचना को बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं। डीडीए की तरफ से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि शीर्ष अदालत के आदेश के अनुसार ढांचा को हटा दिया गया है।