जानिए, किस तरह बसपा सुप्रीमो मायावती ने 1996 में केंद्र की भाजपा सरकार गिरा कर इतिहास रचा था।
1996 के लोकसभा चुनाव परिणामों के बाद भाजपा देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। उसके बाद कुछ सहयोगियों के साथ मिलकर केंद्र में सरकार बना ली तथा 6 मई 1996 को अटल बिहारी वाजपेयी ने देश के 11वें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली थी. उसके बाद विपक्ष ने भाजपा सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया। विपक्ष की सभी पार्टीयों ने अविश्वास प्रस्ताव के संबंध अपनी पार्टी का स्टैंड रखा और लगभग सभी पार्टियों ने सरकार के खिलाफ वोट करने का निर्णय लिया था।
लेकिन जब बसपा की बारी आयी तो बसपा की ओर से बसपा सुप्रीमों मायावती ने संसद में भाषण के दौरान कहा कि उनकी पार्टी का मानना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों की नीतियाँ एक जैसी ही हैं इसलिए उनकी पार्टी न तो कांग्रेस के द्धारा लाये गए अविश्वास प्रस्ताव का समर्थन करेगी और न ही भाजपा का समर्थन करेगी। बसपा सुप्रीमों के ब्यान के बाद भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने राहत की साँस ली और उनको लगा कि बसपा मतदान के दौरान अब्सेंट रहेगी यानि वाकआउट करेगी मगर मायावती एक राजनैतिक खिलाड़ी हैं इस बात को समझ नहीं पाए और मतदान के समय बसपा ने भाजपा सरकार के खिलाफ वोट किया। जिससे परिणाम स्वरूप भाजपा सरकार केंद्र में लड़खड़ाकर गिर गई। देश में हंगामा हो गया और भाजपा विरोधियों में मायावती एक हीरो के सामान स्थापित हो गई। एक मत के चलते बीजेपी बहुमत साबित नहीं कर पाई, परिणाम स्वरूप समय से पहले ही बीजेपी के पहले प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा और सरकार 13 दिन में ही गिर गई थी।
दरअसल, बीजेपी को लोकसभा में 161 सीटें मिली थीं और कांग्रेस को 140 सीटें मिली थीं, लेकिन फ्लोर टेस्ट के दौरान भाजपा और उनके सहयोगियों के सरकार के पक्ष में 269 वोट और उनके विरोध में 270 वोट पड़े थे।
और फिर 28 मई, 1996 को अटल ने अपने भाषण में कहा कि हम संख्याबल के सामने हार गए हैं। अध्यक्ष महोदय, मैं अपना इस्तीफा राष्ट्रपति जी को देने जा रहा हूं।
इसी का बदला लेने के लिए भाजपा ने बसपा सुप्रीमों मायावती को ताज कॉरिडोर जैसे झूठे मामले में फसाया था और कई सालोँ तक भाजपा और कॉंग्रेस ने बसपा की मूवमेंट को नुकसान पहुँचाया था।