परिवार को वक्त देना शुरू करें, जीवन से निगेटिविटी का अंत होगा; आएंगी खुशियां
Every Indian spent more time on social media every day
नई दिल्ली. आपके सप्ताह की शुरुआत सकारात्मकता के साथ हो, इस उद्देश्य से दैनिक भास्कर ने नो निगेटिव मंडे की पहल की थी। इस सकारात्मक सफर ने आज पांच साल पूरे कर लिए हैं। भास्कर दुनिया का एकमात्र अखबार है, जिसने ऐसा पॉजिटिव प्रयोग एक सतत अभियान के तौर पर किया है। आपके जीवन में सकारात्मकता का संचार यूं ही बना रहे, हम यह संकल्प पुन: दोहराते हैं।
दुनिया में इंसान का स्वागत सबसे पहले परिवार करता है। वही उसमें संस्कार, तरक्की और खुशी की नींव रखता है। लेकिन आज परिस्थितियां व्यक्ति को इस बुनियाद से दूर कर रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, देश में करीब 5.5 करोड़ लोग अवसादग्रस्त हैं। विशेषज्ञ कहते हैं इसकी सबसे बड़ी वजह है फैमिली टाइम में कमी। इसलिए नो निगेटिव सोमवार की 5वीं सालगिरह पर हमारी खबरों की थीम है- ‘परिवार ही सबसे बड़ी ताकत’।
परिवार में अकेलापन बढ़ रहा है
ग्लोबल वेब इंडेक्स के अनुसार, हर भारतीय रोज करीब 2 घंटे 40 मिनट सोशल मीडिया पर बिता रहा है। मतलब, महीने में 80 घंटे और पूरे साल में 864 घंटे। इस लिहाज से साल के 40 दिन सिर्फ सोशल मीडिया पर गए। इससे परिवार में अकेलापन बढ़ रहा है। इसलिए आज जरूरत है कि हम परिवार को समय दें।
रिसर्च कहती है : परिवार का साथ उम्र, बुद्धि और आंखों की रोशनी बढ़ाता है
रोज 20 मिनट परिवार संग घूमिए: इससे बच्चों की एकाग्रता, आत्मविश्वास बढ़ता है। एक चीनी शोध में कहा गया है कि इन बच्चों की आंखों की रोशनी अन्य बच्चों से 30% बेहतर होती है और वे गणित में भी माहिर होते हैं।
हफ्ते में 3 बार साथ भोजन करिए: अमेरिकी शोध के मुताबिक, इससे वजन नियंत्रण में रहता है। तनाव, दिल से जुड़ी बीमारियों का खतरा भी कम होता हैं। डायनिंग टेबल पर हर समस्या का समाधान मिल सकता है।
साल में एक बार छुट्टी पर जाइए: मैसाचुसेट्स यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च में नतीजा निकला है कि परिवार के साथ लंबी छुटि्टयों पर जाने से बच्चों की मानसिक शक्ति बढ़ती है। तलाक की आशंका भी कम होती है।
7 साल ज्यादा जीते हैं लोग: पीएलओएस मेडिसिन जर्नल में प्रकाशित शोध बताता है कि जो परिवार के नजदीक होते हैं, वे अकेलेपन से जूझ रहे लोगों के मुकाबले 7 साल ज्यादा जीते हैं। कम बीमार पड़ते हैं।
सुविधाओं के बावजूद नहीं जी सके: दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अनाथ हुए लाखों बच्चे तमाम सुविधाओं के बावजूद सिर्फ इसलिए जी नहीं सके क्योंकि परिवार का साथ नहीं मिला।