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बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग

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मानव जीवन को सुखी बनाने के लिए बुद्ध ने आठ सरलतम मार्ग बताये हैं। हम यहाँ आष्टांगिक मार्ग के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। बुद्ध बताते है कि यदि आप अभ्यास और जाग्रति के प्रति समर्पित हैं तो कहीं भी पहुँच सकते हैं।

बुद्ध का आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है। बुद्ध ने इस दुःख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को ‘मध्यमा प्रतिपद’ या मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है। अर्थात जीवन में संतुलन ही मध्यम मार्ग पर चलना है। अष्टांग मार्ग के सभी ‘मार्ग’ , ‘सम्यक’ शब्द से आरम्भ होते हैं (सम्यक = अच्छी या सही)। बौद्ध प्रतीकों में प्रायः अष्टांग मार्गों को धर्मचक्र के आठ तिल्लियों (spokes) द्धारा निरूपित किया जाता है।

क्या हैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग? आईये जानने की कोशिश करतें हैं और अपने जीवन को सुखमय बनाते हैं।
1. सम्यक दृष्टि (Right view): इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। सत्यों को समझें।
2. सम्यक संकल्प ( Right determination or Intention): अर्थात राग, द्वेष, हिंसा तथा संसारी विषयों के परित्याग के लिए दृढ़ निश्चय। जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है। यदि दुःख से छुटकारा पाना हो तो दृढ़ निश्चय कर लें कि सत्य मार्ग पर चलना है।
3. सम्यक वाक (Right speech): अर्थात मिथ्या, अनुचित तथा दुर्वचनों का परित्याग एवं सत्य वचन की रक्षा। जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता होना आवश्यक है। यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता।
4. सम्यक कर्मांत (Right action): अर्थात हिसां परद्रव्य का अपहरण, वासना-पूर्ति की इच्छा का परित्याग कर अच्छा कर्म करना। कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि होना जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोध, द्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।
5. सम्यक आजीव (Right livelihood): अर्थात न्यायपूर्ण जीविका।यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।
6. सम्यक व्यायाम यानि प्रयास (Right effort): अर्थात बुराई का नाशकर अच्छे कर्म के लिए उद्यत रहना। ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।
7. सम्यक स्मृति (Right mindfulness): अर्थात लोभ आदि को रोककर चित्तशुद्धि। चित्त में एकाग्रता का भाव आता है शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से। एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।
8. सम्यक समाधि (Right Concentration): चित्त की एकाग्रता। उपरोक्त सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।

क्यों आवश्यक आष्टांगिक मार्ग?
बौद्ध इसे ‘काल चक्र’ कहते हैं। अर्थात समय का चक्र। समय और कर्म का अटूट संबंध है। कर्म का चक्र समय के साथ सदा घूमता रहता है। आज आपका जो व्यवहार है वह बीते कल से निकला हुआ है। कुछ लोग हैं जिनके साथ हर वक्त बुरा होता रहता है तो इसके पीछे कार्य-कारण की अनंत श्रृंखला है। दुःख या रोग और सुख या सेहत सभी हमारे पिछले विचार और कर्म का परिणाम हैं।

बुद्ध ने पुनर्जन्म कभी नहीं माना है। जो भी उन्होंने बताया सब अपने खुद के अनुभव से बताया है।  बौद्ध धर्म के इस कर्म चक्र का संबंध वैसा नहीं है जैसा कि माना जाता है कि हमारा भाग्य पिछले जन्म के कर्मों पर आधारित है या जैसी कि आम धारणा है पिछले जन्मों के पाप के कारण यह भुगतना पड़ रहा है। नहीं, कर्म चक्र का अर्थ प्रवृत्तियों की पुनरावृत्ति से और घटनाओं के दोहराव से है। बुरे घटनाक्रम से जीवन को धीरे-धीरे अच्छे घटनाक्रम के चक्र पर ले जाना होगा।

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