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क्या मायावती की सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय नीति सफल होगी ?

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देश में जहाँ कुछ राजनैतिक पार्टियाँ जातिवादी व धार्मिक द्धेष फैलतीं हैं वहीँ मायावती सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय  का सिद्धांत लोगों को समझकर राजनीति करतीं हैं। जो लोग रक्तपात व धार्मिक नफरत की राजनीति करतें हैं वे देश के लिए हितकारी नहीं हैं। मायावती ने हमेशा सभी लोगों में आपस में भाईचारा बड़े इसके लिए समय समय पर भर्षक प्रयास किये हैं जो काफी हद तक अब सफल भी हो रहे हैं। उनकी मानवतावादी नीति का ही असर कि देश में सभी राजनैतिक पार्टियाँ उनका काफी आदर करतीं हैं। 

कोई एक जाति या धर्म के लोगों को त्यागकर सत्ता हासिल करना ठीक नहीं है। धार्मिक आधार पर लोगों को लड़वाना किसी भी सूरत ठीक नहीं हो सकता। कोई एक जाति और एक समूह के बीच उफान पैदा कर  व रक्तरंजित घृणा फैला कर सत्ता हासिल नहीं चाहिए।  सत्ता हासिल करने के लिए सभी जाति और दूसरे धार्मिक समूहों के बीच से समर्थन हासिल करना जरूरी है। मायावती ने हमेशा सभी जाति व धर्मों का हमेशा सम्मान किया है। यही कारण है कि जो लोग उन्हें नफ़रत करते नहीं थकते थे आज उनकी सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय  व मानवता वादी नीति से प्रभावित होकर उनके गुणगान करते नहीं थकते हैं।  

यह बात और यह समीकरण बार-बार चुनावों में साबित हो रहे हैं पर भारतीय राजनीति में अभी कुछ ऐसे राजनीतिज्ञ है और कुछ ऐसी राजनीतिक पार्टियां जो बार-बार समझाने के बाद भी समझने के लिए तैयार नहीं है।

 

समाज में उफान पैदा करना आसान है,समाज में वैचारिक आग लगना आसान है, समाज को हिंसक बनाना आसान है, समाज में घृणा पैदा करना आसान है, समाज में वैचारिक आग लगा, घृणा पैदा कर चुनाव तो जीता जा सकता है और राजनीतिक रोटियां तो सेकी जा सकती है, पर लोगों के बीच में मानवतावादी शक्ति नहीं बनायी जा सकती है। यह सही है कि आजादी के बाद भी देश में मुसलमानों और दलितों का जितना उत्पीडन हुआ है, उन पर जितना अत्याचार हुआ है, उनका जितना अपमान हुआ है उसकी कोई सीमा नहीं बतायी जा सकती है, ये लोग आज भी किसी न किसी रूप में अपमानित हो रहे हैं और हाशिये पर ही खडे हैं। पर यह देश पर राज करने वाली पार्टियों को क्यों नहीं दिखता।

आरक्षण और राजनीतिक शक्ति के कारण दलितों के प्रति सोच बदली है। आरक्षण के कारण दलित भी संपन्न हुए हैं, ताकतवर हुए हैं और राजनीतिक शक्ति निर्मित होने के कारण भी दलित ताकतवर हुए हैं, दलितों के खिलाफ होने वाले अपराधों में इसी दृष्टिकोण से कमी आयी है। इस सच्चाई को स्वीकार किया जाना चाहिए। पर मायावती जैसी मानसिकता इस सच्चाई को कभी स्वीकार करती ही नहीं है। यह भी सही है कि राजनीतिक शक्ति से और आरक्षण की शक्ति से सभी दलितों को लाभ नहीं हुआ है, दलितों का बहुत बडा भाग आरक्षण और राजनीतिक शक्ति से मिलने वाले लाभ से वंचित हैं।

प्रमाणित और निर्णायक तौर पर मायावती कोई नया नहीं कर रहीं वो डॉ भीमराव अबेडकर की ही मानवतावादी नीति को आगे बड़ा रहीं हैं। बसपा संस्थापक काशी राम जी से गुण सीखकर उन्हीं की तरह अपनी पार्टी के लिए सदैव पार्टी कार्यकर्ता और गरीब लोगों से थोड़ा-थोड़ा चंदा लेकर एक राष्टीय पार्टी को चला रहीं हैं वे कभी भी बड़े उधोगपतियों से चंदा नहीं लेतीं क्योकि अगर उधोगपतियों से चंदा लिया तो जीतने के बाद उनके ही काम करने पड़ेंगें और गरीब व मजलूम लोगों का भला नहीं होगा। जब जब मायावती पावर में आईं उन्होंने गरीब व मजलूम लोगों के लिए अनेकों कार्य किये और वो भी सब जाति-धर्म से उठकर किये।

वे सिर्फ न केवल पिछड़ों , दलितों , आदिवासियों , धार्मिक अल्पसंख़्यकों के बीच प्रिय हैं बल्कि सवर्ण समाज में भी बहुत प्रिय हैं , आप सबकों याद होगा जब स्वामीप्रसाद मौर्य बसपा में थें तब उन्होंने देवी-देवताओं पर भयंकर आपत्ति की और काफी बुरा-बुरा कहा था जब बसपा सुप्रीमों मायावती को पता चला तो उन्होंने न केवल मौर्य को फटकार लगाई बल्कि मौर्य की गलती की खुद लोगों से सॉरी बोलीं थीं। ऐसा ही भाजपा नेता दयाशंकर के मामले में हुआ जब नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने  दयाशंकर की माँ , बीबी , बहिन और यहाँ तक कि दयाशंकर की नाबालिक बेटी तक के खिलाफ नारे बाजी कराई तो बहिन जी नसीमुद्दीन सिद्दीकी पर बेहद नाराज हो गई थीं फिर नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने मायावती से माफ़ी मांगते हुए दोबारा ऐसा न करने की बात भी कही थी।

 

सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाय का सिद्धांत ही मायावती का कितना कारगर रहेगा आने वाला वक्त ही बतायेगा। लेकिन इतना जरूर है कि उनका प्रभाव देश और दुनियाँ में दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।

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